थाईलैंड या सियाम? जानें इस देश का नाम कैसे बदला और भारत से कितने गहरे हैं रिश्ते

Abinash ChauhanWorldAsiaPolitics2 months ago24 Views

थाईलैंड इन दिनों बिम्सटेक शिखर सम्मेलन(BIMSTEC Summit) की मेजबानी कर रहा है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी हिस्सा ले रहे हैं. इस मौके पर थाईलैंड एक बार फिर चर्चा में आ गया है. थाईलैंड को “मुस्कान की भूमि” कहा जाता है, और कभी इसका नाम सियाम हुआ करता था. अब सवाल ये उठता है कि सियाम का नाम थाईलैंड कैसे पड़ा? ये देश बना कैसे और भारत से इसके रिश्ते कैसे बने? आइए इन सवालों के जवाब आसान भाषा में समझते हैं.

थाइलैंड आज दुनिया में सबसे ज्यादा पर्यटकों को आकर्षित करने वाले देशों में से एक है. इसकी सबसे बड़ी वजह है यहां के बेहतरीन बीच, दुनिया भर में प्रसिद्ध खान-पान और दक्षिण-पूर्व एशिया में यात्रियों का एक अहम केंद्र होना. थाइलैंड यानी सियाम का इतिहास काफी प्राचीन है. छठवीं से 11वीं शताब्दी के बीच दक्षिण-पश्चिमी चीन से ताई भाषी समूहों का एक बड़ा हिस्सा दक्षिण-पूर्व एशिया की मुख्य भूमि की ओर चला गया. शुरुआत में ये लोग कंबोडिया शासन के अधीन रहे.

13वीं सदी में पहला राजवंश सामने आया
सियाम में 13वीं शताब्दी में पहली बार ताई भाषी लोगों का अपना शासन शुरू हुआ, जिसे सुखोथाई राजवंश के रूप में जाना जाता है. 14वीं शताब्दी में Ayutthaya Kingdom का उदय हुआ, जो दक्षिण पूर्व एशिया में एक प्रमुख शक्ति बनकर उभरा. बर्मा के सैन्य अभियान के चलते इस साम्राज्य का पतन होने के बाद Thon Buri Kingdom सत्ता में आया. इसके बाद साल 1782 में राम-1 ने Chakri राजवंश की शुरुआत की. इसके बाद Rattanakosin Kingdom सामने आया, जिसने 20वीं शताब्दी तक शासन किया.

निरंकुश राजशाही से संवैधानिक राजशाही
यह साल 1932-33 की बात है. महामंदी, चावल की कीमतों में अत्यधिक गिरावट और सार्वजनिक खर्च में भारी कमी के कारण सियाम को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा. इसके कारण सियाम के अभिजात वर्ग के लोगों के बीच असंतोष पैदा होने लगा. देखते ही देखते असंतोष की यह चिंगारी भड़कने लगी और सियाम में राजशाही के विरुद्ध लोगों ने विद्रोह कर दिया. हालांकि, इस दौरान किसी तरह का कोई खून-खराबा तो नहीं हुआ पर सियाम में सदियों से चली आ रही निरंकुश राजशाही को घुटने टेकने पड़े. राजा को सत्ता छोड़नी पड़ी और सियाम एक निरंकुश राजशाही से संवैधानिक राजशाही में बदल गया.

साल 1939 में बदला गया नाम
संवैधानिक राजशाही शुरू होने के बाद साल 1939 में सियाम का नाम बदलकर थाइलैंड कर दिया गया. थाई शब्द वास्तव में ताई से लिया गया है. ताई बोलने वाले लोगों का समूह ही कालांतर में ताई जातीय समूह में बदल गया. हालांकि, साल 1945 में एक बार फिर से थाइलैंड का नाम सियाम किया गया पर 1949 में यह फिर से थाइलैंड हो गया. थाई का मतलब है स्वतंत्रता और लैंड को भूमि कहते हैं. इस तरह इसका मतलब स्वतंत्र भूमि भी है.

कभी यूरोप का उपनिवेश नहीं रहा यह देश
दक्षिण-पूर्व एशिया में थाइलैंड एकमात्र ऐसा देश है, जिस पर कभी यूरोप का शासन नहीं रहा. इसके सभी पड़ोसी देशों जैसे बर्मा और मलेशिया पर ब्रिटेन का शासन रहा तो लाओस और कंबोडिया फ्रांसीसी उपनिवेश का हिस्सा रहे. थाइलैंड पर अंग्रेजों की दृष्टि पड़ी तो उनको मलय क्षेत्र का कुछ हिस्सा सौंप कर और बातचीत के जरिए थाइलैंड ने खुद को उपनिवेश बनने से बचाए रखा.

सदियों पुराने हैं भारत के साथ संबंध
भारत के साथ थाइलैंड का संबंध सदियों पुराना है. थाइलैंड में पहले राजवंश सुखोथाई ने भारत से वहां तक प्रसारित हुए बौद्ध धर्म को संरक्षण दिया था. बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार के साथ यह संबंध प्रगाढ़ होते रहे. भारत में नालंदा से थाइलैंड के अयुत्थया तक विद्वानों का आदान-प्रदान होता रहा है. राम की कथा भी थाइलैंड के जनजीवन का अहम हिस्सा है. इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि पुत्थयोत्फा चालुलोक ने जब Chakri (चक्री) राजवंश की शुरुआत की तो खुद को राम-1 की उपाधि दी थी. आज भी वहां संवैधानिक राजशाही होने के बावजूद राजा को राम की उपाधि मिलती है. रामायण को थाइलैंड में रामाकियन के रूप में जाना जाता है.

साल 1947 से हैं राजनयिक संबंध
भारत के साथ थाइलैंड के राजनयिक संबंध साल 1947 से ही हैं. सदियों पुराने सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों के आधार पर नए संबंध गढ़े गए. साल 1993 में भारत ने लुक ईस्ट की नीति शुरू की, जो अब एक्ट ईस्ट नीति के रूप में काम कर रही है. वहीं, थाइलैंड ने साल 1996 में लुक वेस्ट नीति शुरू की थी जो अब एक्ट वेस्ट के रूप में काम कर रही है. इनके जरिए दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंध और प्रगाढ़ हुए.

आर्थिक संबंध भी मजबूत
दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंध भी काफी मजबूत हैं. साल 2019 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार करीब 12.12 बिलियन अमेरिकी डॉलर था. कोरोना के बावजूद यह साल 2020 में 9.76 बिलियन यूएस डॉलर तक पहुंच गया. साल 2021-22 में यह लगभग 15 बिलियन अमेरिकी डॉलर रहा, जो सर्वकालिक उच्च स्तर था. आसियान क्षेत्र की बात करें तो सिंगापुर, इंडोनेशिया, वियतनाम और मलेशिया के बाद भारत का पांचवां सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार थाइलैंड ही है.

दोनों देशों के बीच रक्षा संबंध भी मजबूत हैं. इसमें रक्षा संवाद, सेनाओं का आदान-प्रदान, उच्चस्तरीय दौरे और सालाना संयुक्त सैन्य अभ्यास शामिल हैं. दोनों देशों की सेनाओं को अभ्यास मैत्री कहा जाता है. वायुसेना का अभ्यास सियाम भारत अभ्यास और नौसेना का भारत-थाइलैंड समन्वित गश्ती कहलाता है.

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